Category Archives: सुक्तियां
परम धर्म
स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि घर–बार त्यागकर साधु बने व्यक्ति का परम धर्म है कि वह जिस समाज से प्राप्त भिक्षा से प्राणों की रक्षा करता है, उस समाज के लोगों को भक्ति और सेवा का उपदेश देता रहे। लोगों को प्रेरणा देकर ही साधु समाज के ऋण से उऋण हो सकता है। दुर्व्यसनों में लिप्त लोगों के दुर्गुण छुड़वाना, उन्हें सच्चा मानव बनाने का प्रयास करना साधु का कर्तव्य है। यह कार्य वही संत कर सकता है, जो स्वयं दुर्व्यसनों से मुक्त हो। परमहंस जी स्वयं दोषों से मुक्त थे, इसलिए वह पतितों के आमंत्रण को स्वीकार करने में नहीं हिचकिचाते थे।
सुक्ति – हिंदी
उसी दिन मेरा जीवन सफल होगा जिस दिन मैं सारे भारतवासियों के साथ शुद्ध हिंदी में वार्तालाप करूँगा। – शारदाचरण मित्र
विद्वान पुरुष
अथर्ववेद में कहा गया है, ‘उत देवा, अवहितं देवा उन्नयथा पुनः। उतागश्चक्रुषं देवा देव जीवयथा पुनः॥’ अर्थात, हे दिव्य गुणयुक्त विद्वान पुरुषो, आप नीचे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाओ। हे देवो, अपराध और पाप करने वालों का उद्धार करो। हे विद्वानो, पतित व्यक्तियों को बार–बार अच्छा बनाने का प्रयास करो। हे उदार पुरुषो, जो पाप में प्रवृत्त हैं, उनकी आत्मज्योति को जागृत करो।
कलियुग
यह कलियुग आयो अबै, साधु न मानै कोय। कामी, क्रोधी, मसखरा, तिनकी पूजा होय।
सुक्ति – संकल्प
संकल्प अपने भीतर किसी नई शक्ति को जन्म देता है। लेकिन दमन अपने भीतर पुरानी कामनाओं की शक्ति को दबाता है। – ओशो
सुक्तियां-निज भाषा उन्नति अहै
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीनपै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होयनिज … पढना जारी रखे
सुक्तियां-निज भाषा उन्नति अहै
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीनपै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होयनिज … पढना जारी रखे