


मोहित चौहान को मसाकली गाने के लिये (देहली६) फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार दिया गया है! इससे हिमाचल प्रदेश भी गोरन्वित हुआ है! मोहित गायन में अलग गायन विधि के लिये जाने जाते है! मोहित ने अपना गायन केरियर सिल्क रुट बेन्ड से शुरु किया! २००९ में उनका फ़ितूर एलबम जारी हुआ! मसाकली से पहले वे ए आर रहमान के साथ रंग दे बसंती में भी गायन कर चुके है! मोहित से फ़िल्म जगत और हिमाचल को बेहद आशाये है उनको बधाई औए शुभकामनायें!
कई बार मनुष्य अपने शरीर की किसी विकृति या विशेषता का प्रयोग कुछ अद्भुत कर दिखाने के लिए कर लेता है १ इस प्रकार के प्रयोगों से लोगों कुछ ऐसा देखने को मिलाता हा जो उन्होंने पहले कभियो नहीं देखा होता ! चीन के जियान शहर के झांग योंग्यंग को जब पता चला की वह अपनी झीभ से अपनी नाक को छू सकते है तो वह अपनी इस विशिष्ठ शारीरिक योगता का प्रयोग अपनी झीभ से सुन्दर लेखन ( केलिग्राफी ) करने के लिए करने लगा ! अब वह झीभ को स्याही में डुबो कर सुन्दर सुन्दर चीनी शब्द लिखते है ! भारत में भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो इससे भ बाद कर करतब दिखाते है ! पिछले दिनों एक टी वी चेनल पर भी अजब गजब करतबों पर आधारित एक कार्यक्रम चला था जिसमें भारतीय करतब बाजों ने लोगो को उनकी तारीफ करने पर मजबूर किया ! अजब गजब कारनामों से संसार से नाम कमाने वालों की कमीं नहीं है !
झूला झूलने का अपना एक रोमांच होता है ! हर कोई इसे अनुभव करना चाहता है! लेकिन 2007 में न्यूयार्क अमेरिका के रिचर्ड रोद्रिगुएज ने जिस तरह इस रोमांच को अनुभव किया उसे कोई और अनुभव नहीं करना चाहेगा ! इस 48 वर्षीय रोलर कोस्टर ने 17 दिनों तक एक बड़े झूले पर बिताएं ! उन्होंने यह कारनामा उत्तरी इंग्लेंड के ब्लेकपुल पलैजर बीच पर कर दिखाया था ! वह प्रत्येक एक घंट बाद 5 मिनट का विराम लेता था ! रोलर कोस्टर पर ही खाते पिटे और सोते थे ! इस तरह रिचर्ड ने 8 हज़ार चकर पुरे किये जो 10 हज़ार 1 सौ 40 किलोमीटर बनता था ! ये दुरी ब्लेकपुल से उसके गृह नगर की दुरी के बराबर थी !
नृत्य के क्षेत्र में विभिन्न देशों में अलग अलग नृत्य शेलियाँ और नृत्य रूपक प्रसिद्ध है ! इनमें से कुछ तो बहुत ही अद्भुत है जिनमें चीन और जापान के ड्रेगन नृत्य है १ इसी प्रकार की एक अद्भुत शेली का नृत्य रोमानिया के सर्कस में शारीरिक कलाबाजियां दिखाने वाले लोआन बेनिआमिन ओप्रिया भी करते है ! वे एक प्लास्टिक की ट्यूब में छुप कर विभिन्न तरह की आकृतियों आयर नृत्य का प्रदर्शन करते है ! अपनी एक सहयिका की मदद से वे ओक्तोपस नृत्य भी दिखाते है इन्हें अपनी इस विशेष प्रकार की कलाबाज़ी में निपुणता हासिल है !
यदि करील के वृक्ष में पता नहीं लगता तो इसमें बसंत का क्या दोष ? यदि उल्लू दिन में देख नहीं पता तो इसमें सूर्य का क्या दोष ? इसी प्रकार यदि पपीहे के मुख में वर्षा कि जलधारा नहीं गिरती तो इसमें बादल का क्या दोष ? ब्रह्मा ने जन्म के समय जिसके ललाट में जो लिख दिया उसे मिटने में कौन समर्थ है ?
अमेरिका ने एक अंतरिक्ष कार्यक्रम तैयार किया है, जिसका ध्येय वाक्य है वापस चांद पर चलें। इसके जरिए सौर मंडल के इतिहास समेत अन्य गूढ़ प्रश्नों के जवाब तलाश किए जाएंगे। इस अभियान के तहत एलआरओ रॉकेट अगले कुछ दिनों में चंद्रमा की सतह से कुछ ऊंचाई पर स्थापित होकर अपना काम शुरू कर देगा, तो दूसरा कुछ दिन बाद चांद की सतह से टकरा कर रोचक खोजों को अंजाम देगा । सौर मंडल में इंसानों की गतिविधियां बढ़ाने के लिए अमेरिका ने एक कार्यक्रम तैयार किया है, जिसका ध्येय वाक्य है वापस चांद पर चलें। इस अभियान का मकसद पृथ्वी समेत सौर मंडल के इतिहास और अन्य गूढ़ प्रश्नों के अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों और निष्कर्षो द्वारा जवाब तलाश करना है। इस अभियान के तहत पहला कदम लुनर रिकॉनिसंस ऑर्बिटर (एलआरओ) के रूप में उठाया गया है, जो एटलस वी रॉकेट की मदद से चांद की तरफ उड़ चला है। इसके साथ ही एक और लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग स्पेसक्राफ्ट (एलसीआरओएसएस) भी गया है। ये दोनों अलग-अलग तरीके से अपने-अपने कामों को अंजाम देंगे। एलआरओ जहां चांद की सतह से 50 किमी की ऊंचाई पर पहुंचकर उसके धरातल और अन्य सतही
जानकारियों को एकत्र करेगा, वहीं एलसीआरओएसएस चांद की सतह से टकराकर संरचनात्मक आंकड़े एकत्र करेगा। एलआरओ का मुख्य उद्देश्य चांद से जुड़े भविष्य के अभियानों के लिए महत्वपूर्ण डाटा एकत्र करने का है। इसके लिए वह चांद से लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई पर गोलाकार कक्षा में स्थित रहकर उसकी सतह का अध्ययन करेगा। इसका एक प्रमुख काम अंतरिक्ष यान या रॉकेट के लिए चांद की सतह पर उतरने लायक सुरक्षित स्थान तलाश करना है। सामान्यत: चांद की सतह सूखे रेगिस्तान सरीखी मानी जाती है। ऐसे में एलआरओ पानी या बर्फ की खोज भी करेगा। इसके विपरीत एलसीआरओएसएस कुछ दिनों बाद चांद की सतह पर गोली की दोगुनी रफ्तार से एक सेंटूर रॉकेट फायर करेगा, यह टकराव चांद के ध्रुवों पर पानी की उपस्थिति को पता लगाने का काम करेगा। इस भिड़ंत से गैस, मिट्टी और वाष्पीकृत पानी का छह मील ऊंचा गुबार सा उठेगा, जिसका अध्ययन एलआरओ करेगा। अंतरिक्ष विज्ञानियों को उम्मीद है कि इस तरह 2 बिलियन वर्षो से छाए रहस्यों पर से परदा उठ सकेगा। अभियान का यह चरण चांद की संरचना के बारे में पता लगाने को समर्पित है। अलग-अलग परीक्षणों से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर अमेरिका वर्ष 2020 में मानव चंद्र अभियान की तैयारी शुरू करेगा।
कॉस्मिक रे टेलीस्कोप रेडियोएक्टिविटी के प्रभाव का पता लगाने में यह उपकरण मददगार होगा। इससे प्राप्त निष्कर्षो के बलबूते वैज्ञानिक संभावित जैविक प्रभाव का पता लगा सकेंगे। लिमैन अल्फा मैपिंग अल्ट्रावॉयलेट स्पैक्ट्रम के तहत चांद की विस्तृत सतह की गहराई से पड़ताल करने में मदद मिलेगी। ध्रुवीय क्षेत्रों और सितारों की रोशनी में चमकने वाले क्षेत्रों का अध्ययन इसका प्रमुख लक्ष्य है। लूनर रेडियोमीटर उपकरण को द डिवाइनर लूनर रेडियोमीटर एक्सपेरीमेंट नाम दिया गया है, जो सतह और उसके ऊपरी वायुमंडल के तापमान का अध्ययन करेगा। इसकी मदद से ठंडे क्षेत्रों और बर्फ का पता लगाया जा सकेगा। न्यूट्रॉन डिटेक्टर से चांद पर हाइड्रोजन के फैलाव की जानकारी ली जा सकेगी। प्राप्त निष्कर्षो से बर्फ की संभावनाओं और उनकी संभावित उपस्थिति का पता लगाया जा सकेगा। लूनर ऑर्बिटर लेजर एल्टीमीटर की मदद से चांद की सतह पर ढलान और अन्य संरचनात्मक जानकारी जुटाई जाएगी। ऑर्बिटर कैमरा से सुरक्षित लैंडिंग वाले क्षेत्र की पहचान की जा सकेगी। मिनी आरएफ अत्याधुनिक सिंथेटिक राडार रेडियो स्पैक्ट्रम के एक्स और एस बैंड पर काम करने में सक्षम है। इसकी मदद से पृथ्वी से भी संपर्क रखा जा सकेगा।
चांद की उत्पत्ति वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद की उत्पत्ति जाइंट इंपैक्ट या द बिग व्हैक से हुई। इस अवधारणा के तहत मंगल ग्रह के आकार की कोई वस्तु 4.6 बिलियन वर्ष पहले पृथ्वी से टकराई होगी। इस टक्कर से वाष्पीकृत चट्टानों का एक बादल पृथ्वी से उठकर अंतरिक्ष में चला गया होगा। ठंडा होने के बाद वह गोला छोटे किंतु ठोस पदार्थ में बदल गया होगा और बाद में इनके एक साथ आ जाने से चांद बना होगा। दूर जा रहा है चांद आप जिस वक्त इसे पढ़ रहे होंगे, उस वक्त भी चांद पृथ्वी से दूर जा रहा होगा। प्रत्येक वर्ष चंद्रमा पृथ्वी की घूर्णन प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का कुछ हिस्सा चुरा लेता है। इसकी मदद से वह स्वयं को अपनी कक्षा में प्रति वर्ष 4 सेंटीमीटर ऊपर धकेलता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अस्तित्व में आने के समय चांद की पृथ्वी से दूरी 22,530 किलोमीटर रही होगी, लेकिन अब यह दूरी 450,000 किलोमीटर है
हिमाचल प्रदेश के बल्द्वाड़ा गांव के मदन ने एक ऐसा इंजन बनाने का दावा किया है जो हवा और गैस से चलेगा। राज्यपाल ने सांइस एंड टेक्नोलॉजी विभाग को डिजाइन की समीक्षा के निर्देश दिए हैं। शोध को आगे बढ़ाने और सुविधाएं देने के लिए मदन ने अब राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा है। उनका दावा है कि उनके द्वारा तैयार डिजाइन देश का पहला ऐसा डिजाइन है, जो पूरी तरह हवा और गैस पर आधारित होगा। इससे गाड़ियों में एसी भी चलाया जा सकेगा। ऐसा अभी तक किसी भी वाहन में नहीं है। वह अपने फामरूले को पेटेंट कराने के लिए भी प्रयासरत हैं। मदन का कहना है कि अगर उनके डिजाइन को मान्यता मिल जाए, तो वाहनों को चलाने में पेट्रो पद्धार्थो की जरूरत नहीं रहेगी। इसके अलावा प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी। इस इंजन को किसान खेती और अन्य व्यावसायिक कार्यो के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। मदन लाल पेशे से इंजीनियर मैकेनिक हैं। वे इस समय रीजनल अस्पताल के तकनीकी विंग में कार्यरत हैं।