यह क्‍या हो रहा ?

यह क्‍या हो रहा है आज सामान लेने बाजार गया तो दुकानदार ने दस का यह नोट दिखाया जिसके दोनो तरफ पूरे इत्‍मीनान के साथ चित्रकारी कर रखी थी । आप इस नोट की दुर्दशा देख कर अन्‍दाजा लगा सकते है इस चित्रकारी करने में व्‍यक्ति को कितना समय लगा होगा। अब प्रश्‍न यह है कि करंसी को खराब करने वालों पर क्‍या कार्रवाही होनी चाहिए। राष्‍ट्रीय प्रतीक चिन्‍हों को सहेजना हमारा कर्तव्‍य है तो आदमी करंसी को खराब क्‍यों करते है । नोटों पर चित्रकारी करना अपना फोन नम्‍बर या नाम लिखना क्‍या अपराध की श्रेणी में नहीं आता । शायद हम ईमानदार नहीं है तभी तो अपने राष्‍ट्रीय प्रतीकों को खराब करने में हमें आनन्‍द आता है । क्‍या हम कभी सुधरेगें भी या नहीं शायद हम नहीं सुधरेगे।

About रौशन जसवाल विक्षिप्‍त

अपने बारे में कुछ भी खास नहीं है बस आम और साधारण ही है! साहित्य में रुचि है! पढ लेता हूं कभी कभार लिख लेता हूं ! कभी प्रकाशनार्थ भेज भी देता हूं! वैसे 1986से यदाकदा प्रकाशित हो रहा हूं! छिट पुट संकलित और पुरुस्कृत भी हुआ हूं! आकाशवाणी शिमला और दूरदर्शन शिमला से नैमितिक सम्बंध रहा है! सम्‍प्रति : अध्‍यापन
यह प्रविष्टि शिक्षा में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

1 Response to यह क्‍या हो रहा ?

  1. JAGDISH BALI कहते हैं:

    हम बिना डंडे के नहीं सुधरेंगे !

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