अहंकार

सिखों के पांचवें गुरु अर्जुनदेव जी महान विरक्त संत के साथसाथ एक प्रतिभा संपन्न कवि भी थे। उनके दर्शन सत्संग के लिए सभी वर्गों के लोग लालायित रहा करते थे। एक बार पंजाब में एक सुशिक्षित व्यक्ति उनके दर्शन के लिए पहुंचा। उसने गुरुजी से प्रश्न किया, ‘साधना के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा क्या है?’ गुरुजी ने बताया, ‘अभिमान साधना मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। गुरुवाणी में कहा गया हैहउमै वड्डा रोग है –पतन का सबसे बड़ा कारण ही अहंकार है। सभी मनुष्यों में वही बड़ा है, जो अपना अहं भाव छोड़कर विनम्र बन जाता है। जो अपने को सबसे छोटा समझता है, वास्तव में वही बड़ा है।गुरु अर्जुनदेव जी ने अष्टपदियों की रचना की। सुखमनी साहिब में उनकी चौबीस अष्टपदियां दी गई हैं। इन अष्टपदियों में मानव को तमाम विकार त्यागकर प्रभु के नाम का स्मरण करने की प्रेरणा दी गई है। गुरजी लिखते हैं, ‘ब्रह्म ज्ञानी वह है, जो ब्रह्म को समझता है। ब्रह्म ज्ञानी निर्भीक होता है। उसका उपदेश सभी को पवित्र कर देता है।गुरु अर्जुनदेव जी लिखते हैं, ‘प्रभु की निकटता प्राप्त करने के लिए घरबार त्यागकर संन्यासी हो जाना जरूरी नहीं है। मनुष्य गृहस्थ रहकर अपने सभी सांसारिक दायित्वों का निर्वाह करता हुआ भी प्रभुनाम का सुमिरन करके निर्वाण प्राप्त कर सकता है। प्रभु पर भरोसा रखने से मृत्यु का भय स्वतः जाता रहता है। 

About रौशन जसवाल विक्षिप्‍त

अपने बारे में कुछ भी खास नहीं है बस आम और साधारण ही है! साहित्य में रुचि है! पढ लेता हूं कभी कभार लिख लेता हूं ! कभी प्रकाशनार्थ भेज भी देता हूं! वैसे 1986से यदाकदा प्रकाशित हो रहा हूं! छिट पुट संकलित और पुरुस्कृत भी हुआ हूं! आकाशवाणी शिमला और दूरदर्शन शिमला से नैमितिक सम्बंध रहा है! सम्‍प्रति : अध्‍यापन
यह प्रविष्टि प्रेरक प्रसंग में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

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