गिरी राज के ६-१२ मई २००९ के अंक में हिमाचल का लघु कथा संसार लेख पढ़ा ! अच्छा लगा लेख सारगर्भित हैं इसमें कोई दो राए नहीं है ! रतनेश जी से मैं हलका सा नाराज़ हूँ क्योकि उन्होंने लेख में मुझे निष्क्रय लिखा है ! मैं यह मानता हूँ की मैं आजकल छाप नहीं रहा हूँ लेकिन मेरी लेखन यात्रा में विराम नहीं आया है ! मैं ईमानदारी से साहित्य सृजन तो कर ही रहा हूँ ! आज कल पात्र पत्रिकाओं में कोई भी रचना मैं भेज नहीं रहा हू ! शायद मेरी व्यस्तता इसमें आड़े आ रही है ! प्रशासनिक कार्यों के दृष्टिगत मेरे प्रकाशन में विराम सा तो आ गया हैं परन्तु मैं निष्क्रिय नहीं हुआ हूँ !
मुझे प्रसंता है की इतने वर्षों के बाद भी मेरे मित्रों ने मुझे याद रखा है ! मुझे रतनेश जी के साथ बिताये चंडीगढ़ में वो सभी लम्हे याद है ! वो सभी मेरी समृतियों की अनमोल धरोहर है !
रत्नेश जी के आलेख से मुझे पुनः रचनाये भेजने की प्रेरणा मिली है ! गिरिराज का भी धन्यवाद की उनके माध्यम से मुझे पुनः कुछ करने की प्रेरणा मिली है ! आशा हे की गिरी राज और हिमप्रस्थ मुझे भुला नहीं होगा ! पुनः आप सभी को साधुवाद